क्या रामचरित मानस में था कोरोना का जिक्र, जानें सच

क्या रामचरित मानस में था कोरोना का जिक्र, जानें सच

सेहतराग टीम

संकट काल के इन दिनों में राम चरित मानस की चौपाइयां कोरोना के संदर्भ में गलत आठों के सतह सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। रामचरित मानस के मर्मज्ञ इन दोहे और चौपाइयों के वास्तविक अर्थ कुछ अलग बता रहे हैं। व्हाट्सएप से लेकर सोशल मीडिया के तमाम मंचों पर इसे शेयर किया जा रहा है, जैसे लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति बन रही है।

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चौपाइयों का वास्तविक भावार्थ:

रामचरित मानस के ममर्ज्ञ संत मैथिली शरण गुप्त बताते हैं कि यहां जिन चौपाइयों का उल्लेख किया जा रहा है, वह उत्तरकांड के मानस रोग का प्रसंग है। रामचरित मानस के इस मानस-रोग प्रसंग का कोरोना संक्रमण से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। उनके अनुसार काकभुशुंडि जी गरुण जी को रामायण की जब पूरी कथा सुनाते हैं तो गरुण जी उनसे जिज्ञासा प्रकट करते हैं कि महाराज उन सात प्रश्नों के बारे में कुछ बताइए जिनसे सारा संसार अकारण दुखी है। गरुण जी उत्तरकांड के दोहा 120/ख से सातों सवाल पूछना शुरू करते हैं।  जिनका काकभुशुंडि महाराज निराकरण करते हैं। रोग से जुड़े प्रश्न के जवाब में काकभुशुंडि महाराज बताते हैं की लोग इनसे दुख पाते हैं। मोह सारे रोग की जड़ है। मोह के वशीभूत होने से इंसान को बहुत कष्ट होते हैं। काम (उग्र) वात के सामान, लोभ बढ़कर कफ के सामान और क्रोध पित्त के सामान छाती को जलाता है। अर्थ यह कि मोह कष्ट मिह का मूल है और इससे उपजे काम, लोभ और क्रोध शरीर को वात, पित्त और कफ की तरह कष्ट देते हैं। अनिम दोहे का सार यह है कि जब एक ही रोग के कारण या चलते इंसान मर जाता है तो फिर यह कोई व्याधियों या रोगों का समूह, असाध्य रोगों का ढेर है। इनसे प्राणी सदैव कष्ट में ही रहता है। ऐसी दशा में वह समाधि अवस्था अर्थात चित्त को शांत, माया से विमुख होने की अवस्था में भी विश्रांति कैसे प्राप्त कर सकता है।

क्या हो रहा है वायरल?

सोशल मीडिया पर रामचरित मानस की दोहे और चौपाइयां साझा की जा जा रही हैं और इनके वास्तविक अर्थ से इतर व्याख्या की जा रही है।

चौपाइयां इस प्रकार हैं-

सब कै निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं,

सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दुख पावहिं सब लोगा।

मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला।

काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित्त छाती जारा।।

रामायण (जबकि लिखा जाना चाहिए था, रामचरित मानस) के दोहा नंबर 120 में लिखा है कि जब पृथ्वी पर निंदा बढ़ जाएगी, पाप बढ़ जाएंगे तब चमगादड़ अवतरित होंगे और चारों तरफ उनसे संबंधित बीमारी फैल जाएगी और लोग मरेंगे। दोहा नंबर 121 में लिखा है कि एक बीमारी जिसमें नर मरेंगे उसकी सिर्फ एक दवा है प्रभु भजन दान और समाधि में रहना यानी लॉकडाउन।

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संत मैथिली शरण गुप्त ने इसका सच बताया-

सब कै निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं...... जो जड़ या मूर्ख यानी निंदा करना जिनका स्थायी स्वाभाव होगा, वो अगले जन्म में चमगादड़ होकर अवतरित होंगे यानी उनकी अगली योनि चमगादड़ की होगी। वायरल हो रही समाग्री में इन चौपाइयों का गलत भाव दर्शाया गया है जिनका कोरोना जैसे संक्रमक रोग से कोई लेना-देना नहीं है।

 

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